नारी से ज्यादा पुरुषों को हानि करता है पितृसत्ता : कमला भसीन

'नारी से ज्यादा पुरुषों को हानि करता है पितृसत्ता :  कमला भसीन
 *जन मन विवेचन का जेंडर पर तृतीय संवाद सत्र का किया गया आयोजन
 शुभम  द्विवेदी बिहार से.
टेकारी (गया )- दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग के विद्यार्थियों द्वारा "जन मन विवेचन" की दूसरी श्रृंखला "समाज-जेंडर-शिक्षा" के अंतर्गत रविवार को तीसरा ऑनलाइन सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र के चर्चा का विषय था "क्या मैं भी पितृसत्तात्मक हूं?" इस विषय पर जनसाधारण की समझ को विकसित करने और विद्यार्थियों की विभ्रांतियों को दूर करने के लिए भारत की जानी-मानी नारीवादी कार्यकर्ता कवियत्री तथा सामाजिक विज्ञानी कमला भसीन ने वक्ता के रूप में  उपस्थित होकर अपनी बात रखी संवाद सत्र  में कमला भसीन ने सबसे पहले श्रोतागणों से अपने नारीवाद का विचार साझा किया l उन्होंने आगे कहा कि  नारीवाद एक नहीं, कई किस्म के होते हैं। उन्होंने निजी और सामाजिक मसलों का भेद समझाते हुए  कहा कि समाज में सड़क पर चलती लड़की को घूरे जाना, शादी में लाखों – लाख रुपए खर्च करना इत्यादि l निजी नहीं बल्कि सामाजिक मसला है- क्योंकि इस सब का असर समाज पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि औरों पर उंगलियां उठाते रहना समस्या का समाधान नहीं, यदि हम चाहते हैं कि अन्याय न हो तो इसके लिए ज़रूरी है कि हम अपने अंदर झांकें और सोचें कि क्या सभी को समान अधिकार और समान अस्मिता प्राप्त है, या हम भी पितृसत्तात्मक मूल्यों से ही ग्रस्त हैं। कमला जे ने  संवाद सत्र में  कहा कि किस प्रकार पुरुषों को असंवेदनशील व अमानवीय बनाने में पितृसत्ता का योगदान है। आगे बढ़ते हुए कमला भसीन ने अपनी नजर से पितृसत्ता की समझ साझा करते हुए कई पितृसत्तात्मक झलकियों के उदाहरण पेश किए। उन्होंने यह भी  कहा कि असमानता और अन्याय पर आधारित सभी विभेदन- जातिवाद, वर्गवाद, नस्लवाद इत्यादि पितृसत्ता के पूरक हैं l और असमानता और अन्याय पर आधारित इस व्यवस्था के लिए पितृसत्ता ज़रूरी है। इसके अतिरिक्त पितृसत्ता में अहिंसा का ढांचागत तरीके से शामिल होना और पितृसत्ता की देन ‘ जेंडर’ के मायने पर भी प्रकाश डाला l उन्होंने आगे कहा कि आगे कैसे समाज को रूढ़िबद्ध करने की साज़िश में पितृसत्ता फैलाने का बीरा भी औरतों को ही सौंपा गया है। पितृसत्तात्मक मूल्यों को बढ़ावा देने में धर्म, गाने, मुहावरे, पोर्नोग्राफी इत्यादि की भूमिका को भी रेखांकित किया। कमला भसीन के नारीवाद का मकसद है सब की बराबरी और सब की आज़ादी, इसलिए वह अपने नारीवाद में ट्रांसजेंडर, मर्द और औरत, सभी के दर्द को महसूस करती हैं lऔर मानती हैं कि संविधान केवल पन्नों पर ही नहीं दिलों पर भी लिखा जाना चाहिए।
सत्र में श्रोतागणों ने कमला  भसीन अपने व्यक्तिगत अनुभवों को भी साझा किया। सभी श्रोतागणों ने बढ़-चढ़कर इस संवाद सत्र में हिस्सा लिया। चर्चा में संचालन का कार्य दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के बीए बीएड की छात्रा कृतिका मुखर्जी ने किया l आदरणीया वक्ता का स्वागत विश्वविद्यालय के बी ए बीएड के छात्र निशांत कुमार द्वारा किया गया। अंत में चर्चा का संक्षिप्तीकरण और धन्यवाद ज्ञापन शिक्षा विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ नृपेन्द्रवीर सिंह ने किया।