विलुप्त होती संस्कृति को बचा रहे बनारसी आलम

विलुप्त होती संस्कृति को बचा रहे बनारसी आलम

 सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ कठपुतली नृत्य से गांवों में जगा रहे अलख

 रिपोर्ट :विनोद विरोधी

 बाराचट्टी( गया) ।बनारसी आलम- परिचय का कोई मोहताज नहीं ।गांव- गवई इलाके में करीब 80 के दशक से कठपुतली नृत्य के माध्यम से विलुप्त हो रही संस्कृति को बचाए रखने का हर संभव कवायद कर रहे हैं। गया जिले के सुदूरवर्ती प्रखंड मोहनपुर के लई गांव के रहने वाले महादलित परिवार में जन्मे व पले -बढ़े बनारसी आलम अपने कठपुतली नृत्य के माध्यम से गांव- गवई के लोगों पर अमिट छाप छोड़ रखा है। मौका चाहे कोई पर्व- त्यौहार का हो अथवा शादी ब्याह का। सामाजिक कार्यक्रम हो या फिर कोई सांस्कृतिक अलख जगाने की। आर्थिक संकटों के दौर से गुजरते हुए बनारसी सामाजिक कुरीतियों पर चोट करने से बाज नहीं आते ।सहज व सरल लोकप्रिय गीतों के माध्यम से समाज में फैले नशाखोरी ,दहेज प्रथा, डायन ,भूत -प्रेत समेत शिक्षा व स्वास्थ्य आदि मुद्दों को लेकर अलग जगाने का काम कर रहे हैं। बनारसी आलम बताते हैं कि उन्हें कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती। बस आम जनों के सहयोग से अब तक अपने कारवां  को आगे बढ़ाने में जुटे हैं। हालांकि मैं अपनी  कला को गया शहर स्थित पुस्तक मेला व राजधानी पटना के बेली रोड में कठपुतली नृत्य का प्रदर्शन कर अपनी ख्याति अर्जित कर चुका हूं ।वे आगे कहते हैं कि मेरे साथ  इस काम में स्थानीय सहयोगी शिवबरतत मांझी भी सहयोग करते हैं। इसके अलावा अपने उम्र के लिहाज से अब नए  उभरते कलाकारों को भी कठपुतली नृत्य सिखलाने का काम कर रहा हूं ।ताकि विलुप्त होती संस्कृति को बचाया जा सके।