*बेटी दिवस के अवसर पर 'ओजस्विनी' द्वारा 'बेटियों की सुरक्षा' विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन

*बेटी दिवस के अवसर पर 'ओजस्विनी' द्वारा 'बेटियों की सुरक्षा' विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन*

*-विपत्तियों के समक्ष ढाल बनकर खड़ी रहती हैं बेटियाँ:डॉ रश्मि*
रिपोर्ट डीके पंडित 
गयाबिहार
अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद की सहयोगी संस्था 'ओजस्विनी' की ओर से प्रत्येक वर्ष सितंबर माह के चतुर्थ रविवार को मनाए जाने वाले बेटी दिवस के सुअवसर पर 'बेटियों की सुरक्षा' विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसका संयोजन, समन्वयन तथा संचालन ओजस्विनी की जिलाध्यक्षा डॉ०कुमारी रश्मि प्रियदर्शनी ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ विज्ञान शिक्षिका डॉ०ज्योति प्रिया द्वारा प्रस्तुत सुमधुर सरस्वती वंदना से हुआ। इस अवसर पर देवघर से जुड़ी शिक्षा विभाग की प्रो नूतन शर्मा ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता को अति आवश्यक बताया।  डॉ ज्योति प्रिया ने घर में बेटे-बेटियों के साथ किये जाने वाले दोयम दर्जे के व्यवहार की निंदा करते हुए महिलाओं के साथ घटित होने वाले दुष्कर्म, मानसिक और भावनात्मक शोषण, एसिड अटैक तथा हत्या जैसी क्रूर वारदातों के खिलाफ समाज को एक साथ मिलकर आवाज उठाने की बात कही। समाज सेवी महिला ममता गुप्ता तथा अर्चना महाजन ने कहा कि हमें बेटियों की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने की जगह बेटों की उच्छृंखलता पर नकेल कसने की आवश्यकता है। लड़कियों तथा महिलाओं की सुरक्षा घर से ही प्रारंभ हो जानी चाहिए। ओजस्विनी की महामंत्री शिल्पा साहनी ने बेटियों के साथ होने वाले दोयम दर्जे के व्यवहार के प्रति नाराज़गी जताते हुए कहा कि प्रश्न बेटियों से ही क्यों किए जाते हैं?  अमीषा भारती ने कहा कि हम महिलाओं को पुरुषों से हमेशा एक उचित दूरी बनाकर रखनी चाहिए, फिर चाहे वे पुरुष हमारे अपने पिता, भाई, परिजन अथवा निकट के सगे-संबंधी ही क्यों न हों। कृति प्रकाश ने बेटियों को अपनी सुरक्षा के प्रति स्वयं जागरूक रहने की बात कही। ज्योति कुमारी तथा अमीषा सिन्हा ने शिक्षा को महिलाओं की सुरक्षा तथा सफलता हेतु अति आवश्यक शर्त ठहराया। तनु प्रकाश ने कहा कि माता-पिता को अपनी बेटियों की प्रतिभा पर विश्वास रखते हुए उन्हें आगे बढ़ने हेतु हर अवसर उपलब्ध करवाने चाहिए। वहीं अमीषा सिन्हा का मानना यह है कि अपनी पहचान बनानी हो तो बेटियों को विपरीत परिस्थितियों से कभी भी डरना नहीं चाहिए। डॉ०रश्मि ने कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को बेटी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि "विपत्तियों के समक्ष ढाल बनकर खड़ी रहती हैं बेटियाँ, दुःख-दर्द-पीड़ा-वेदना को हँस-हँस सहती हैं बेटियाँ, खुद टूट कर भी जोड़ती आई हैं रिश्तों की डोर को, स्नेह-सलिल सी परिवार सुरसरिता में बहती हैं बेटियाँ!" उन्होंने सभी माँ, बहन तथा बेटियों से ओजस्विनी बनकर समाज में होने वाले किसी भी तरह के लैंगिक भेदभाव, वैचारिक, मानसिक तथा भावनात्मक हिंसा, दुष्कर्म तथा दुर्व्यवहार आदि का निडरता से सामना करने का आग्रह किया। उन्होंने युवतियों तथा महिलाओं को घर के सभी सदस्यों के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य पर भी ध्यान देने की बात कही। कार्यक्रम का समापन शांति पाठ से हुआ।