बरुन तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों पचास - हजार, की दूनियाँ तुझे याद करें*

*बरुन तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों पचास  -  हजार, की दूनियाँ तुझे याद करें*
*बरूण सिंह के जन्म दिन पर बधाई देते बड़े भाई सह समाज के चिंतक ,राजकुमार सिंह सनातनी*
*बरूण कुमार सिंह के जन्मदिन पर सनातनी ने संदेश में गरीबों के प्रति वरूण का दिवानगी, करूणा  - भाव, पागलपन, को सैल्यूट देते हुए बधाई, शुभकामना, आशीर्वाद भी दिया* 
*अजय कुमार पाण्डेय / अनिल कुमार मिश्र की रिपोर्ट*
औरंगाबाद:  ( बिहार )
 *बिहार राज्य अंतर्गत औरंगाबाद जिले के कुटूम्बा प्रखंड़ की धरती पर जन्में अति प्रिय नहीं ,लोकप्रिय, बरूण कुमार सिंह की जन्मदिन* है। *जिससे आप सबों को यथा संभव रू - बरू कराने का प्रयास* करूँगा। *पद की बात करूं तो भारतीय  - रेल का एक कर्मठ, ईमानदार, सिपाही ,कद की बात करूं, तो 10  - 12 साल हमसे छोटा होकर भी हमसे कद में बहुत ऊंचा* है ! *आसनसोल में उसने रेलवे स्टेशन और आस - पास जब गरीबों को* देखा, *असहाय  - वृद्धों को देखा, मानसिक विकलांगों को भूख से तड़पते* देखा! *तभी उसने रेलवे की ड्यूटी करते हुए उन्हें अपने हाथों बनाकर खाना खिलाने का संकल्प ले* लिया। *ड्यूटी भी करना, बाजार से चावल - दाल - सब्जी खरीदकर लाना, खुद से बनाना, फिर दरिद्री को नारायण स्वीकार करके आदर से भोजन कराना काम शुरू कर* दिया। *उक्त बातें राजकुमार सिंह सनातनी ने भाव - विभोर में* कही।
*सनातनी ने कहा है कि नदियों और बीरों का उद्गम बहुत छोटा होता* है। *वैसे ही इन्होंने आसनसोल में जो बीज बोया* था! *आज वह लंगर एक बड़ी नदी बन* गया। *अब तो आसनसोल से ट्रांसफर हो गया, पर जुनून तो साथ -  साथ चलता* रहा।
*जहां असहाय वहीं* सेवा। 
*बरूण कुमार सिंह के जीवन व कार्य शैली पर प्रकाश डालते हुए बड़े भाई राजकुमार सिंह सनातनी" ने कहा है कि 50 हजार से ज्यादा की सैलरी पर तीन - चार सौ  की पैंट, डेढ़ सौ रू की टी शर्ट और साठ - सत्तर की हवाई चप्पल, जो बच* गया! *दरिद्र नारायण को घुमा - फिरा के समर्पित कर* दिया ! *मैंने पूछा था कभी, घर का खर्च कैसे चलता* है ?" *बस इतना ही उत्तर की भईया* समझे।  ( *बड़ा भाई, बब्बर सिंह, सॉफ्टवेयर इंजीनियर* हैं।) *दो  - चार कलम पढ़ लिया हूं, तो मैं इसे बरुन का जुनून लिखता* हूं!  *परन्तु यह जहां रहता* है! *वहां के कम पढ़े - लिखे लोग इसे पागल कहते* हैं, *और इसके काम को* पागलपन ! 
*अब मुझे भी लगता है कि जुनून से पागलपन शब्द ज्यादा बड़ा होता है और कम पढ़े - लिखे लोग ही वास्तव में अधिक बुद्धिमान* हैं।
*सामूहिक - विवाह भी हर साल करवाता है और ईमानदारी से अपने खून पसीने की कमाई का सात - आठ लाख रू फेंक देता* है। *गरीबों की शादियां खूब गाजा  - बाजा, वीडियो - कैमरा के साथ बेटियों को अच्छे  - अच्छे कपड़े और गहने भी उपहार मे दिया जाता* है। 
*सनातनी ने जन संदेश में कहा है कि इसी दिसंबर माह में तो फिर है सामूहिक, दहेज - रहित विवाह का* कार्यक्रम। *सैकड़ों शादियां होंगी एक* साथ। *खूब मजा आएगा देखने* में! *बुनदीया  -  पुड़ी भी* मिलेगी। *आप भी आइए न एक दिन इनका पागलपन* देखने।
*सनातनी ने जन संदेश में कहा है कि पद से कद नहीं बड़ा होता और न लंबाई से ऊंचाई बढ़ जाती* है! *जी वाजी राव सिंधिया एक समय देश का सबसे बड़ा महाराजा* था, *और बाबू कुंअर सिंह एक छोटे से रियासत के रियासतदार पर कद तो कुंअर सिंह का बड़ा हो* गया!
*पहलवान खल्ली की लंबाई 07 फिट से अधिक* है, *और लालबहादुर शास्त्री की लंबाई मात्र 04 फिट 03 इंच* थी, *पर शास्त्री जी की ऊंचाई आज तक मापना भी संभव न हो* सका !
*यह सब तो निर्भर करता है कि दोपाया जानवर के अंदर बैठा कौन* है? *आदमी के अंदर आदमी बैठा है या* जानवर ? *देव बैठा है या* दानव?