*कृषि बिल में संशोधन की गुजाइश - गजनफर इकबाल*

                

*कृषि बिल में संशोधन की गुजाइश  - गजनफर इकबाल*
*अजय कुमार पाण्डेय*
मुजफ्फरपुर: ( बिहार )  *गजनफर इकबाल ने आलेख प्रस्तुत करते हुए मीडिया के माध्यम से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि फसल और अनाज का बाजारीकरण काफी तेजी से हुआ* है! *लेकिन इसके विपरीत किसानों को फायदा होने के बजाय नुकसान ही हुआ* है! *बैंक, बाजार भू - स्वामी और पूंजीपति इन सभों के दबाव में ही किसान  अपनी जिंदगी गुजारते* हैं! *सच्चाई यह है के उपज जयादा होगा, तो बाज़ार में कीमत कम* मिलेगी!, *यदि उपज कम होगा तो भी नुकसान* होगा , *कुल मिलाकर खेती की प्रकिया से लेकर बाजारीकरण तक कहीं भी किसानों का हित नही* दिखता! *वरन् आत्महत्या के मामलों में जरूर कमी आई* होती! *बहरहाल 2019 में सरकार ने क्रषि बिल को पारित* किया! *जिसका किसान लगातार विरोध कर रहे* हैं , *लेकिन किसी लोकतांत्रिक देश में चुने हुए सरकार का यह भी दायित्व बनता है के किसी देशव्यापी विवाद का समाधान प्रारम्भिक तौर पर ही बात - चीत से सुलझाने का प्रयत्न किया* जाए! *ताकि इसकी त्रुटियों में सुधार कर इसके मूल उददेश्य को जनता के बीच पहुंचाया जा* सके, *चुंकि क्रषि कानून सदन से पारित एक राष्ट्रीय  - कानून* है! *इसलिए इसको देश भर में लागू करने के लिये राज्यों की सहमति के साथ -  साथ आम -  नागरिक में भी इस कानून के बारे में जो भी विरोधाभास* है! *उसे दूर करने का प्रयत्न करना* चाहिए! *आज देश के बहुत से शहरों में इसके विरोध की बातें सामने आ रही* हैं! *कहीं - कही तो उपद्रव इस कदर हो रहा है के नीजि और सरकारी सम्पति का भी नुकसान हो रहा* है! *पुलिस  - पब्लिक में  मार - पीट भी हो रही* है! *जो कि देश को नुकसान पहुंचा रहा* है! *जिस तरह से चुनी हुइ सरकारों को कानून बनाने का अधिकार* है! *उसी प्रकार जनता को भी सरकार के किसी नीति के विरोध में शांतिपूर्ण आंदोलन करने का अधिकार* है! *टकराव की स्थिति में बात - चीत को ही सबसे पहला माध्यम बनाना* चाहिए! *जनता के साथ भी और विपक्षी पार्टियों के साथ भी बात -  चीत की वयवस्था करनी*  चाहिए!, *उचित और संतुलित संवाद जटिल से जटिल मसलो को सुलझाने की क्षमता रखता* है! *अहंकार किसी भी तरह उचित नही* है! *यह सिवाय टकराव पैदा करने के और कुछ नही* करेगा !
*किसी कानून की विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि यह किस प्रकार देशहित में* है, *और इसकी उपयोगिता के साथ  - साथ कितना प्रायोगिक* है!  *साथ ही भविष्य में इसके दूरगामी परिणाम क्या आ सकते* हैं! *किसानों का पहला और मुखय मुद्दा न्युनतम समर्थन मूलय को लेकर* है! *जिसकी वह गारंटी चाहते* हैं! *मतलब यह कि सरकार जो न्युनतम बाजार मूल्य तय* करे! *उससे कम में मंडी,कारपोरेशन या बाजार समीति नही खरीद सके,और ऐसा करने पर सजा का प्रावधान* हो!
*बाकि के दो कानूनों में थोड़ी बहुत संशोधन के साथ लागू किया जा सकता* है! *दूसरा मुख्य मुद्दा कॉन्ट्रैक्ट - फार्मिंग का* है! *इसमें भी अगर फसल के पैदावार के हिंसाब से कीमत मिले, तो भी किसान तैयार हो सकते* हैं! *लेकिन महज जमीन के रकबा के हिसाब से पूर्व में ही निर्धारित किमत मिलेगी, तो किसानों के लिये घाटे का सौदा है और वह कभी तैयार नही* होंगे! *तीसरा मुख्य मुद्दा भंडारण को लेकर* है! *इसमें भी यदि बेचे हुए अनाज का भंडारण कर मंडी वाले उंची कीमत पर बेचते* हैं, *तो इसका जयादा नुकसान किसानों के बजाय आम -  जनता को* होगा! *क्योंकि वैसे भी किसानों के पास भंडारण की सुविधा नही* है! *इसलिए किसानों का मुख्य मुद्दा न्युनतम समर्थन मूल्य ही* है! *जो किसान खुद खेती करते हैं और बाजारों में मोल  - जोल कर बेचते* हैं!  *उन्हें जयादा नुकसान हो सकता* हैं! *क्योंकि वह स्थानीय बाजारों की मोनो  - पौली का शिकार हो जाएगे और न्यूनतम समर्थन मूल्य की बाध्यता नही रहने पर मजबूरन औने  - पौने दामों पर बेच* देंगे! *दूसरी अहम बात जो इस बिल का हिस्सा नही है कि सरकार किसान कार्ड धारक या पेशेवर किसानों के लिये पेंशन योजना* बनाए! *वैसे किसानों के लिये नही जो खेती करवाते* हैं, *या बटाईदारी करवाते* हैं! *इसलिए सरकार को चाहिए के इस कानून की समीक्षा करे और किसानों के हित  में बिल में संशोधन* करे!