सरकारी पहल से ही अभिभावकों की चिंता दूर होगी - गजनफर इकबाल

*सरकारी पहल से ही अभिभावकों की चिंता दूर होगी  - गजनफर इकबाल*
*अजय कुमार पाण्डेय* मुजफ्फरपुर: ( बिहार )  *कोरोना वायरस या कोविड ने पूरे विश्व में तबाही मचाई और भारत जैसे विकासशील देश के लिये भी कोरोना से संघर्ष काफी चुनौतीपूर्ण* रहा! *कोरोना से जंग में जन भागीदारी भी रही और सरकारी पहल भी सराहनीय* रही! *इसमें बुद्धिजीवी लोगों और गैर - सरकारी संगठनों का भी योगदान* रहा! *फायदे तथा नुकसान आंकड़ों के खेल में पडने के  बजाए हम इसके कारण उतपन्न सबसे जटिल समस्या पर प्रकाश डालने की कोशिश कर रहे* हैं *कोरोनाकाल में लगे लाकडाउन के कारण मेडिकल सेवाओं को छोड़ सभी उध्योग-धंधे,आयात - निर्यात, बाजारीकरण और सेवाओं से जुडी़ इंडस्ट्री बिलकुल ठप पड* गई! *जिससे जी0डी0पी0 गिरा तथा अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान* पहुंचा! *बहुत से लोग बेरोजगार भी हो गए तथा  आर्थिक तंगी भी* आई! *फिर धीरे - धीरे अनलाक की प्रकिया के साथ - साथ सब कुछ सामान्य होने* लगे! *बाज़ार के खुलने से अर्थव्यवस्था को गति मिलने* लगी, *लेकिन स्कूलों को नही खोला* गया! *स्कूलों में पढ़ाई के दूसरे विकल्पों यानि आनलाइन ,आडियो  - विडियो तथा विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक ऐप के जरिए पढ़ाई की वयवस्था की* गई! *जिससे अभिभावकों पर मोबाइल और इंटरनेट का खर्चा भी बढ गया और पढ़ाई भी उतनी कारगर नही* रही! *बच्चों को प्रमोट कर दिया गया और रि - एडमीशन के नाम पर वसूली शुरु की* गई! *लगातार दूसरा सत्र भी बगैर सकूल खोले ही प्रारंभ कर दिया* गया! *बाद में सरकार ने कुछ शर्तों के साथ स्कूलों को खोलने की अनुमति* दी! *अब भी बहुत से शहरों में स्कूलों को नही खोला गया* है! *लेकिन एक समस्या बरकरार* रही! *जो इतनी  जटिल है कि बगै़र सरकारी पहल के इससे छुटकारा पाना मुश्किल* है‍! *वह है स्कूल की* फीस!, *स्कूलों द्वारा अभिभावकों पर लगातार दबाव बनाया जाता* रहा! *असमर्थता के कारण बहुत से बच्चे दूसरे संकुलों में चले* गए! *बहुतों ने पढ़ाई छोड़* दी! *बहुत से बच्चे सरकारी स्कूलों में चले* गए!   *सरकारी नौकरी - पेशो के लिये यह समस्या इतनी बड़ी नही* थी! *लेकिन छोटे व्यापारी, ,दैनिक मजदूर ,कामगार ,नीजी कर्मचारियों के लिये तो जैसे मुसीबतों का पहाड़ ही टूट* पडा़! *कुछेक स्कूलों में थोड़ी बहुत राहत दी* गई! *लेकिन अधिकांश स्कूलों में रियायत की कोई गुंजाइश नही दी* गई!
*स्कूल - प्रबंधन, आनलाइन पढ़ाई का बहाना बनाकर पल्ला झाडता* रहा! *जबकि थोड़ी  - बहुत वित्तिय  - प्रबंधन कर टयूशन फीस के अलावे डेवलप्मेंट चार्ज ,परीक्षा शुल्क, स्मार्ट  - कलास चार्ज, ,लाइब्रेरी चार्ज, कम्पयूटर फीस, जेनेरेटर चार्ज,,ट्रांसपोर्टेशन चार्ज इत्यादि में कटौती कर कुछ राहत दी जा सकती* थी!
*सरकार को भी इस पर पहल करनी* चाहिए! *जैसे यह विभिन्न आपदाओं, जैसे बाढ, भुकंप, सुखाड में मदद् करती* है। *कोरोनाकाल भी एक भयावह आपदा ही रहा* है! *दूसरी तरफ फीस वसूली को लेकर स्कूलों के लिये गाईडलाइन बना सकती* थी! *जिसमे स्कूलों के वित्तिय क्षमता के अनुसार अभिभावकों को रियायत दी जा* सके! *सरकार भी चाहती तो स्कूलों को सब्सिडी या दूसरी आंशिक आर्थिक, अनुदान देकर परोक्ष रूप से अभिभावकों को मदद कर सकती* थी! *जैसे बिजली बिल,,नगर - निगम का टैक्स आदि भी माफ की जा सकती* थी! *बच्चे और शिक्षा यह दोनों ही देश का भविष्य तय करते* हैं, *और इन दोनों को ही दरकिनार  कर दिया* गया!
*अब भी यदि सरकार फीस वसूली को लेकर दिशा  - निर्देश तय करे और स्कूलों की आर्थिक क्षमता का धयान रखते हुए गाईडलाइन तैयार करे, तो भी अभिभावकों को कुछ हद तक राहत मिल सकती* है! *हम इस बात से भी इनकार नही कर सकते हैं कि सभी संस्थानों में वित्तीय उतार - चढाव वहन करने की  क्षमता नहीं रहती* है!