आलोक मौर्या और ज्योति मौर्या का जब विवाह हुआ तो सूर्यवंशम की फिल्मी स्क्रिप्ट दोनों के जीवन के लिए आदर्श बन गईं।

आलोक मौर्या और ज्योति मौर्या का जब विवाह हुआ तो सूर्यवंशम की फिल्मी स्क्रिप्ट दोनों के जीवन के लिए आदर्श बन गईं।

कहते हैं कि यदि कोई बात बार बार दोहराई जाए तो उसका असर निश्चित ही पड़ता है। लिखा भी है 
करत करत अभ्यास नित जड़मति होत सुजान
रसरी आवत जात नित पाथर परत निशान

सूर्यवंशम मैक्स पर आई थी 20 जुलाई 1999 में। अब रिलीज के तुरंत बाद तो कोई मूवी टीवी पर दिखाई नहीं देगी। साल भर बाद भी अगर दिखाई गई होगी तो अगर जोड़ें तो 22 साल मान सकते हैं। 22 वर्षों से महीने में कम से कम दो बार तो अवश्य ही दिखाई जाती है। कहने का अर्थ यह कि आलोक मौर्या सूर्यवंशम देखते हुए ही बड़े हुए। अमिताभ बच्चन का वैसे ही युवाओं में बहुत क्रेज था ऊपर से सूर्यवंशम के हीरा ठाकुर  नए नए बड़े होते क्रांतिकारी युवाओं के लिए आदर्श पुरुष के रूप में उभरे थे। उधर एक और युवती ज्योति मौर्या भी सेटमैक्स के सूर्यवंशम से प्रेरित हो रही थी। आलोक मौर्या और ज्योति मौर्या का जब विवाह हुआ तो सूर्यवंशम की फिल्मी स्क्रिप्ट दोनों के जीवन के लिए आदर्श बन गईं। कहते हैं कि फिल्में विशुद्ध मनोरंजन के लिए बनाई जाती हैं। सूर्यवंशम के डिस्क्लेमर में लिखा था कि इस कहानी को सिर्फ मनोरंजन की दृष्टि से देखें। पर यहां तो कहानी ही और चल रही थी। रील के हीरा ठाकुर की आत्मा रियल के आलोक मौर्या के शरीर मे प्रवेश कर चुकी थी। खैर आलोक मौर्या के त्याग और ज्योति मौर्या के कठिन परिश्रम ने सफलता की इबारत सूर्यवंशम के स्क्रिप्टानुसार ही लिखी किन्तु फ़िल्म का संघर्ष अपना सा अवश्य लगता है किंतु क्लाइमेक्स कभी भी अपना सा नहीं होता उसमें ड्रामा होता ही होता है। इसी तरह सूर्यवंशम के हीरा ठाकुर का संघर्ष बेशक आलोक मौर्या को अपना सा लगा परन्तु क्लाइमेक्स बिल्कुल रियल है। इसका किसी कहानी से प्रेरित हो पाना संभव ही नहीं होता है। और अंततः वही हुआ जो कलयुग में होता है। जाना था जापान पंहुच गए चीन। रियल लाइफ ऐसे ही चलती है। स्त्री पुरूष को अपने से शक्तिशाली ही देखना चाहती है। धरती और आकाश में भी यही अंतर है। यही रहेगा भी। आदर्शवाद किताबों में ही अच्छे लगते हैं। वास्तव में तो यही चलन है। चलता भी रहेगा।