लैंगिक विमर्श के नए आयामों को गम्भीरता से समझने की ज़रूरत: डॉ अनुराग

*लैंगिक विमर्श के नए आयामों को गम्भीरता से समझने की ज़रूरत: डॉ अनुराग* 
रिपोर्टः डीकेपंडित 
गया। मगध विश्वविद्यालय बोधगया के स्नातकोत्तर हिंदी एवं मगही विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में गुरुवार को 'लैंगिक विमर्श: वैचारिकी एवं साहित्य' विषयक एकल व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य डॉ• परम प्रकाश राय कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता मगध विवि. के मानविकी संकायाध्यक्ष डॉ• विनय कुमार ने की। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एवं अतिथि हिंदी एवं भारतीय भाषा विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के आचार्य डॉ• अनुराग कुमार थे। उनका अभिनन्दन डॉ. राकेश कुमार रंजन ने पुष्पगुच्छ देकर और डॉ. अनुज कुमार तरुण ने अंगवस्त्र प्रदान कर किया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन, माल्यार्पण, दिव्या कुमारी द्वारा सरस्वती वंदना एवं पूजा कुमारी द्वारा स्वागत गीत के साथ किया गया।

मगध विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. भरत सिंह ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि पूरे साहित्य जगत में विमर्श का दौर चल रहा है। इस दौर को नई पीढ़ी के लोग बढ़ा रहे हैं। लैंगिक विमर्श पर इन्होंने कहा कि आज स्त्रियां पुरुषों के पीछे नहीं बल्कि साथ चल रही हैं।

मुख्य वक्ता डॉ• अनुराग कुमार ने मगध क्षेत्र की तारीफ करते हुए कहा कि भारत के इतिहास पर जब भी बात की जाएगी उसमें मगध की बात अवश्य होगी। मगध ज्ञान एवं संस्कृति की चेतना का केंद्र रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां विमर्श के साथ-साथ संवाद की भी परंपरा रही है। वैदिक काल में स्त्रियां संवाद कर रही थीं एवं अपने अधिकार की मांग कर रही थीं। हमेशा से हमारी परंपरा प्रश्नांकित करने की रही है। इन्होंने कबीर, तुलसीदास एवं नानक जी के संवाद के तरीकों को बताया। उन्होंने बताया कि लैंगिक विमर्श से हम केवल स्त्री एवं पुरुष का बोध समझते हैं पर तृतीय लिंग भी उतना ही महत्वपूर्ण है। तृतीय लिंग का अर्थ सिर्फ किन्नर नहीं है बल्कि यह एक LGBTQIA जैसे 7 अलग लैंगिक और उपेक्षित समूह है। डॉ. अनुराग ने कहा कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना स्त्री एवं पुरुष के विमर्श को निर्मित करती है। एक स्त्री के भीतर भी पितृसत्ता मौजूद हो सकती है और इसे पुरुषसत्ता से अलग रूप में देखने की ज़रूरत है। मुख्य वक्ता के व्याख्यान के अंत में प्रश्नकाल भी हुआ और छात्रों द्वारा प्रश्न पूछा गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. विनय कुमार ने कहा कि हमेशा से सामाजिक संरचना में स्त्रियों को कमतर आंका गया है, पर आज स्थिति अलग है। आज स्त्रियां समाज में बेहतर स्थिति में है। इन्होंने कई फिल्मों के उदाहरण देते हुए स्त्रियों की अहम भूमिका के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अब बदलाव हो रहा है पर अभी भी अधिक बदलाव की आवश्यकता है। पुरुषों में शारीरिक बल होता है पर स्त्रियों में आत्मबल बहुत अधिक होता है। 

हिंदी विभाग के आचार्य डॉ. सुनील कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया और चौथीराम यादव जी को याद किया।
कार्यक्रम में मगही विभाग के अध्यक्ष एवं छात्र कल्याण अधिष्ठाता डॉ. ब्रजेश कुमार राय, हिन्दी विभाग की डॉ• अंबे कुमारी, बी.एस. कॉलेज की डॉ• चित्रलेखा, डॉ. अजेय कुमार की गरिमामयी उपस्थिति ने कार्यक्रम को सफल बनाया। इसके अतिरिक्त हिन्दी, इतिहास एवं पत्रकारिता विभाग के रीता, ब्रजेश, नीतीश, उत्पल, अमन्तोष, आशीष जैसे विभिन्न शोधार्थी, विद्यार्थी  और परवेज़, इंद्रजीत, मुन्ना, रोहित जैसे कर्मचारी भी मौजूद रहे।