हिन्दी और मगही विभाग में आयोजित किया गया तुलसी-जयंती-सप्ताह

*हिन्दी और मगही विभाग में आयोजित किया गया तुलसी-जयंती-सप्ताह* 
रिपोर्टः डीकेपंडित गयाबिहार
'गया।सुनिअ सुधा देखिअहिं गरल सब करतूति कराल।
जहँ तहँ काक उलूक बक मानस सकृत मराल' अर्थात् सदाचार रूपी अमृत को सिर्फ़ सुना जाता है, वह दुर्लभ है, किंतु अनाचार रूपी विष हर ओर फैला हुआ दिखाई दे रहा है। जैसे कौवे, उल्लू और बगुले हर जगह मिल जाते हैं लेकिन मानसरोवर का हंस तो एक ही होता है, उक्त बातें स्नातकोत्तर हिन्दी एवं मगही विभाग द्वारा तुलसी-जयंती-सप्ताह के उपलक्ष्य में आयोजित 'रचनाकार तुलसीदास : विविध संदर्भ' विषयक अतिरिक्त एकल व्याख्यान के अंतर्गत राँची विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. जंग बहादुर पाण्डेय ने कहीं। तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस, कृष्ण गीतावली और विनय पत्रिका की मुख्य रूप से चर्चा करते हुए डॉ. पाण्डेय श्रोताओं के समक्ष राम और सीता के अतिरिक्त हनुमान, भरत, शत्रुघ्न आदि के विविध अनछुए प्रसंगों को उजागर किया। इस क्रम में उन्होंने हनुमान के अयोध्या से निकाले जाने सम्बन्धी कानाफ़ूसी और उस पर अयोध्या के राजदरबार की प्रतिक्रिया का विशेष रूप से उल्लेख किया।
          अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. विनय कुमार ने तुलसी की रचनाओं की आध्यात्मिक चेतना को रेखांकित किया। विभागाध्यक्ष डॉ. भरत सिंह ने अपने स्वागत वक्तव्य में रामचरितमानस से जीवन में कई प्रकार की सीख लेने का अनुभव साझा किया और मानस के मासपारायण का सभी से अनुरोध किया। आभार ज्ञापन करते हुए वरिष्ठ आचार्य प्रो. सुनील कुमार ने कई मुद्दों को छात्रों के समक्ष रखा। 
        कार्यक्रम का संचालन डॉ. परम प्रकाश राय ने किया। पुष्पगुच्छ प्रदान कर डॉ. राकेश कुमार रंजन ने मुख्य अतिथि का अभिनन्दन किया। दिव्या कुमारी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। इस अवसर पर अध्यक्ष छात्र कल्याण एवं मगही विभागाध्यक्ष प्रो. ब्रजेश कुमार राय, समाजशास्त्र विभाग के प्रो. प्रमोद कुमार चौधरी, डॉ. अम्बे कुमारी, एडवोकेट विनोद कुमार, मगही के विद्वान् डॉ. रामसिंहासन सिंह की उपस्थिति ने सभागार को गरिमा प्रदान की। इसके अतिरिक्त शोधार्थी कुणाल, ब्रजेश, विद्यार्थी प्रवेश, नीतीश, उत्पल, ख़ुशबू, शंभू, कर्मचारीगण परवेज़, मुन्ना, इंद्रजीत, रोहित, धर्मेंद्र आदि की भी सक्रिय उपस्थिति रही।