भाषिक विवाद को समाप्त कर देश मे सौहार्द्र स्थापित करने का महती प्रयास है नई शिक्षा नीति*

*भाषिक विवाद को समाप्त कर देश मे सौहार्द्र स्थापित करने का महती प्रयास है नई शिक्षा नीति*

*भारत को भी एकभाषिकता पर गंभीरता से करना होगा विचार*

*आठवीं अनुसूची में शामिल होने की स्वार्थी राजनीति को कमज़ोर करती है नई शिक्षा नीति*
रिपोर्टः डीकेपंडित 
गया।मगधविश्वविधालय बोधगया के
हिन्दी को केन्द्र में रखकर स्वाधीनता आंदोलन आगे बढ़ा लेकिन आज़ादी के बाद कई नेताओं के मन मे सिर्फ़ स्वभाषा को आगे बढ़ाने की राजनीति घर कर गई। संविधान सभा की बहस राष्ट्रभाषा के प्रश्न से शुरू हुई लेकिन हिन्दी को राजभाषा के पद से संतोष करना पड़ा और वहाँ भी अंग्रेजी से सह राजभाषा के रूप में समझौता करना पड़ा जबकि अंग्रेजी का सवाल बहस में था ही नहीं। ये बातें प्रोफ़ेसर पवन अग्रवाल ने शनिवार को मगध विवि. के स्नातकोत्तर हिन्दी एवं मगही विभाग द्वारा आयोजित 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति और हिन्दी भाषा' विषयक संगोष्ठी में कहीं।

पवन जी ने कहा कि भाषा, समाज और संस्कृति का आपस मे गहरा सम्बन्ध है। समाज और संस्कृति के बदलने के साथ अगर भाषा मे परिवर्तन नहीं होता है तो वह भाषा विलुप्त हो जाती है। उन्होंने 14 प्रमुख बिंदुओं के माध्यम से नई शिक्षा नीति की विशेषताओं को रेखांकित किया, जिसमें मुख्य रूप से आदिवासियों की भाषा और परंपरा का संरक्षण, मातृभाषा पर ज़ोर देने से आठवीं अनुसूची की स्वार्थमूलक राजनीति कमज़ोर होने और राष्ट्रीय स्तर पर सौहार्द्र बढ़ने, तकनीक के इस्तेमाल से भाषा और ज्ञान के प्रसार और संरक्षण का कार्य तथा  नए रूप में त्रिभाषा सूत्र की बात उन्होने की।

डॉ. अग्रवाल ने कहा कि भाषिक विवाद को समाप्त कर देश मे सौहार्द्र स्थापित करने का महती प्रयास है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, इसीलिए इस नीति में कहीं हिंदी का नाम नहीं है। उन्होंने बताया कि राष्ट्र के विकास को केंद्र में रखकर यूरोपीय, अमेरिकी और पूर्व एशियाई देशों में बहुभाषिकता के साथ एकभाषिकता को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत को भी विविध भाषाओं के साथ कुछ विशेष प्रयोजनों के लिए एकभाषिकता को अपनाना होगा। 
अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए मानविकी संकायाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार ने कहा कि नई शिक्षा नीति में हिन्दी का कोई भविष्य नहीं है। अगर आपको कोई रोज़गार पाना है तो कोई अंतरराष्ट्रीय भाषा जानना अनिवार्य है अर्थात् आपका द्विभाषी होना ज़रूरी है। भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, यह दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है। हिन्दी अपनी ताक़त से आगे बढ़ी है, बिना किसी के सहारे के।

स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. भरत सिंह ने सभागार का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया। उन्होंने पवन अग्रवाल जी की अंतरराष्ट्रीय अकादमिक गतिविधियों से सभागार को अवगत कराया। आभार ज्ञापन करते हुए हिन्दी के वरिष्ठ आचार्य डॉ. सुनील कुमार ने डॉ. पवन अग्रवाल से लंबे परिचय को याद करते हुए हिन्दी की महत्ता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन डॉ. परम प्रकाश राय ने किया। डॉ. राकेश कुमार रंजन द्वारा पुष्पगुच्छ प्रदान कर एवं शोधार्थी कुमारी मानसी द्वारा अंगवस्त्र भेंट कर डॉ. अग्रवाल का स्वागत एवं अभिनंदन किया गया।
अंजलि ने मधुर स्वर में सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।

मगही विभागाध्यक्ष एवं अध्यक्ष छात्र कल्याण डॉ. ब्रजेश कुमार राय, डॉ. अम्बे कुमारी, वाणिज्य विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. धरेन कुमार पाण्डेय और पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. विनोद कुमार सिंह की गरिमामयी उपस्थिति से कार्यक्रम में चार चाँद लग गए। इसके अतिरिक्त किरण कुमारी शर्मा, हिन्दी शोधार्थीगण कमलेश कुमार, अतुल प्रकाश नीरज, कुणाल किशोर, ब्रजेश कुमार, स्नातकोत्तर विद्यार्थीगण नीतीश, आकाश, रवि रंजन, खुशबू, शम्भू, कर्मचारीगण परवेज़, मुन्ना, धर्मेंद्र, इंद्रजीत, रोहित की भी सक्रिय सहभागिता रही।