*भाषा की गुलामी सबसे बड़ी गुलामी है : प्रो. रामदरश राय*
अथवा
*साहित्य की लोकभूमि शास्त्रभूमि से अधिक वज़नदार है*
अथवा
*भारतीय संस्कृति को विकृति से बचाने के लिए बोली को बचाना ज़रूरी*
रिपोर्टः डीकेपंडित गयाबिहार
गया।भारतीय संस्कृति को विकृति से बचाने के लिए हमें बोलियों की ओर जाना होगा। विकृत बोली की वज़ह से ही महाभारत का युद्ध हुआ। 'बानी एक अमोल है जो कोइ बोलै ज्ञान'। मगही और भोजपुरी को अपने समृद्ध साहित्य का प्रसार करते हुए आठवीं अनुसूची में सम्मिलित होने का हरसम्भव प्रयास करना चाहिए। इस क्रम में उन्होंने कहा कि 'हीरा रामायण' का काव्यानुवाद भी मगही में किया जाना चाहिए। उक्त बातें मंगलवार को स्नातकोत्तर हिन्दी एवं मगही विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित 'मगही-भोजपुरी साहित्य की लोकभूमि (विशेष संदर्भ : राजवंश सहाय 'हीरा')' विषयक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में आये गोरखपुर विवि. के हिन्दी विभाग के पूर्व आचार्य प्रो. रामदरश राय जी ने कहीं। यह अवसर हिन्दी विभाग के पूर्व आचार्य राजवंश सहाय 'हीरा' जी के पुण्यतिथि-सप्ताह मनाने का भी था। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. परम प्रकाश राय ने दुष्यंत कुमार और मीना कुमारी नाज़ को भी उद्धृत किया।
प्रो. राय ने हीरा जी की ग्रंथावली और उनके ऊपर स्मृति-ग्रंथ प्रकाशित करने का सुझाव सभागार में उपस्थित उनके परिवारीजन को दिया। उन्होंने बताया कि मगही और भोजपुरी जैसी तमाम हिन्दी की बोलियों की लोकभूमि ने हिन्दी को समृद्ध बनाने में महत्त्वपूर्ण योग दिया है। शिष्ट-साहित्य भी अपनी ऊर्जा लोक से ही ग्रहण करता है। इसलिए आज अंधाधुंध भूमंडलीकरण से प्रभावित होकर लोक से कटते जाना अपनी भाषा को गुलाम बनाते जाना है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. भरत सिंह ने कहा कि राजवंश सहाय हीरा जी आजीवन साहित्य के लोक की चर्चा अपने ग्रन्थों में करते रहे। उसे गहराई से समझे जाने की ज़रूरत है।
वरिष्ठ आचार्य प्रो. सुनील कुमार ने हीरा जी के शिष्यत्व में स्नातकोत्तर से लेकर हजारी जी पर शोध-कार्य करने तक और बाद के जीवन के कई रोचक संस्मरणों को साझा किया। हीरा जी के शिष्य डॉ. ब्रजेन्द्र कुमार ब्रजेश ने भी अपने गुरु की रचनाशीलता और अध्ययनशीलता पर उन्हें भावपूर्ण ढंग से याद किया।
हीरा जी की पुत्रियों डॉ. गीता सहाय और डॉ. कविता सहाय ने अपने काव्यात्मक संस्मरणों में भावपूर्ण तरीक़े से हीरा जी को याद किया। उन्होंने बताया कि हीरा जी पर उनकी कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं और उनकी कई पांडुलिपियों को प्रकाशित करने का भी कार्य प्रगति पर है। इसी क्रम में हीरा जी के सुपुत्र डॉ. गोलोक बिहारी श्रीवास्तव ने हीरा जी के दुर्लभ भोजपुरी गीतों को भी उद्धृत किया।
सभी अतिथियों का स्वागत डॉ. राकेश कुमार रंजन ने किया। शोधार्थी पौलटी कुमारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। अनुभा ने पुष्पगुच्छ देकर और दिव्या ने अंगवस्त्र देकर मुख्य अतिथि का अभिनंदन किया। शोधार्थी अलका रानी ने डॉ. रामदरश राय को बुद्ध प्रतिमा भेंट की। इस अवसर पर मगही विभागाध्यक्ष प्रो. ब्रजेश कुमार राय, पाटलिपुत्र विवि. हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. छाया सिन्हा, पालि विभाग के अध्यक्ष डॉ. संजय सहाय, हिन्दी विभाग के डॉ. अनुज कुमार तरुण, स्नातकोत्तर विद्यार्थीगण अंजलि, नीतीश, सर्वेश, मुन्ना, उत्पल, शम्भू, वंदना आदि भी मौजूद रहे।