वसुधैव कुटुम्बकम् : एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्यःकुलपति

वसुधैव कुटुम्बकम् : एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्यःकुलपति
रिपोर्टः डीकेपंडित गयाबिहार
गया।  महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में आयोजित भारतीय राजनीति विज्ञान परिषद का 60वें अधिवेशन में मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के कुलपति प्रो एसपी शाही शामिल हुए। अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शीर्षक *"वसुधैव कुटुम्बकम् : एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य "* पर अपने विचार व्यक्त किया और भरतोदय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि भारतवर्ष एक विविधताओं और संस्कृतियों का देश है। यहां पारम्परिक और मौलिक गणतंत्र है जिसका नाम भारत गणराज्य है। यह क्षेत्रफल के हिसाब से सातवां सबसे बड़ा देश है, दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है, और दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र है। वैदिक सभ्यता के अनुसार भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र था। ऋग्वेद के तृतीय मंडल में भारत और सातवे मंडल में भारत के लोगों के बारे में वर्णन आता है।भारतवर्ष का जिक्र हाथीगुफा अभिलेख में भी मिलता है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभु मनु ने व्यवस्था सम्भाली। उन्होंने कहा, ऐतिहासिक रूप से कम से कम पांच नामों - भारत, इंडिया, हिंदुस्तान, जम्बूद्वीप और आर्यावर्त - का उपयोग इस भूमि को भौगोलिक, पारिस्थितिक, जनजातीय, सामुदायिक आधार और अन्य आधार पर नामित करने के लिए किया गया है। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। यह माना जाता है कि भारतीय संस्कृति यूनान, रोम, मिस्र, सुमेर और चीन की संस्कृतियों के समान ही प्राचीन है। भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। भारतीय संस्कृति में में धर्म, अध्यात्मवाद, ललितकला ज्ञान, विज्ञान, विविध विद्याए, नीति, विधि-विधान, जीवन प्रणालियां और वे समस्त क्रियाएं और कार्य है जो उसे विशिष्ट बनाते हैं और जिन्होंने भारतीय के सामाजिक और राजनैतिक विचारों को, धार्मिक और आर्थिक जीवन को साहित्यक, शिष्टाचार और नैतिकता में ढाला है। इसे विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी माना जाता है। जीने की कला हो, विज्ञान हो या राजनीति का क्षेत्र भारतीय संस्कृति का सदैव विशेष स्थान रहा है। अन्य देशों की संस्कृतियाँ तो समय की धारा के साथ-साथ नष्ट होती रही हैं, किंतु भारत की संस्कृति व सभ्यता आदिकाल से ही अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ बनी हुई है। भारतीय संस्कृति की एक बहुत बड़ी विशेषता यह है कि इसके जीवन का ध्येय धर्म और कर्म को ही माना है। जहाँ अन्य देशों के विद्वान-बुद्धिमान लोगों ने अपने यहाँ की जनता को उद्योग और संघर्ष करके धन-संपत्ति संग्रह करने और उसके द्वारा सुखों के उपभोग की प्रेरणा दी है। भारत आने वाले समय में  वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान बनायेगा और दुनियाभर में अग्रणी भूमिका में होगा।