मातृभाषा की उन्नति के बिना किसी भी समाज का विकास होना संभव नहींःडां.विनोद कुमार

मातृभाषा की उन्नति के बिना किसी भी समाज का विकास होना संभव नहींःडां.विनोद कुमार

रिपोर्टः डीकेपंडित 
गया । हिंदी दिवस के अवसर पर
हिंदी की उपेक्षा पर प्रधानाध्यापक डॉ विनोद कुमार की बात कहने को तो हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा  आत्मा है,  लेकिन जिस तरह से दिन की शुरुआत से ही गुड मॉर्निंग बोलकर हिंदी की टांग खींचने में लग जाते हैं तो राष्ट्रभाषा की महता सूर्योदय से धीरे-धीरे घिसने लगती है।हमारे देश में लगभग 80% सरकारी कर्मचारी अपना हस्ताक्षर अंग्रेजी में करते हैं। इतना ही नहीं आज शहरों में रहने वाले लोग भी अपना रुतबा दिखाने के लिए अंग्रेजी में बोलकर अपने-आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं। जिसकी नकल आज आम जनता भी करने लगी हैं । इस देश की न्यायालय जब अंग्रेजी में फैसला सुनाता हैं , तो हिंदी फफक, फफक  कर रोते हुए कहती है ये भारतवासी आपसे अच्छा तो मॉरिशस, नेपाल, पाकिस्तान, गुयाना, टोवैगो, सूरीनाम और त्रिनिदाद जैसे कई देश हैं जो हमे प्यार से हमें अपना रही है ।हिंदी अपनी आंसू पोंछते हुए न्यायालय से कहती है तुम एक फैसला मेरे लिए भी सुनाते हुए कह दो कि मैं तुझे राष्ट्रभाषा नहीं मानता हूं। लेकिन जैसे ही हिंदी न्यायालय से दो कदम आगे बढ़ते हुए गांव, मोहल्ले की ओर कदम रखती है , तो वहां  गर्व महसूस करते हुए कहती है कि हमारा भारत विविधताओं का देश है। ऐसे में हमें न्यायालय भले ही अंग्रेजी बोलकर हमें लज्जित करें लेकिन आज भी विश्व के 80 करोड़ आम जनमानस की कंठ पर मैं विराजमान हूं। भारत के अधिकतर राज्यों में दसवीं तक हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाती है ।गांव घरों में हिंदी भाषा में बात करने की चलन है ।देश को एक करने में जब हिंदी अहम भूमिका निभाती है। मातृभाषा की उन्नति के बिना किसी भी समाज का विकास होना संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना अपनी पीड़ा को दूर करना दूर-दूर तक संभव नहीं है ,तो ऐसे में हिंदी न्यायालय से हाथ जोड़कर कहती है कि जब देश ही नहीं विश्व के कई देश प्यार से मुझे हिंदी दीदी कह कर अपना रही है ,तो आप भी हमें न्याय देकर मेरा सिरमौर की चमक बढ़ाने की महती कृपा करें।