संस्कृति का वट-वृक्ष लोकभाषाओं के संवर्द्धन से होगा पुष्ट: डॉ. नवीन नंदवाना*

*संस्कृति का वट-वृक्ष लोकभाषाओं के संवर्द्धन से होगा पुष्ट: डॉ. नवीन नंदवाना*
अथवा
*भाषा की ज्योति से ही प्रकाशित है संसार : डॉ. नंदवाना*

बोधगया। रिपोर्टः डीकेपंडित 
लोकभाषाओं का संरक्षण और संवर्धन संस्कृति के वट-वृक्ष के पुष्ट होने के लिए अपरिहार्य है। भाषा एक अर्जित संपदा है और उसी की ज्योति से संसार प्रकाशित है। मगही, भोजपुरी, ब्रज, अवधी आदि विभिन्न बोलियों-भाषाओं के लोक और शास्त्र से हिन्दी परिपुष्ट होती रही है। इसलिए उसकी परम्परा आज भी जीवंत और प्रवहमान है।  उक्त बातें शुक्रवार को स्नातकोत्तर मगही विभाग, मगध विवि. द्वारा आयोजित 'मगही के विविध आयाम' विषयक एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में मोहनलाल सुखाड़िया विवि उदयपुर के हिन्दी विभाग से आये डॉ. नवीन नंदवाना ने कहीं।

कार्यक्रम का आरम्भ दीप-प्रज्ज्वलन और हिन्दी एवं मगही विभागाध्यक्ष प्रो. ब्रजेश कुमार राय द्वारा पुष्पगुच्छ प्रदान कर अतिथियों के स्वागत से हुआ। प्रो. राय ने बताया कि अकादमिक वातावरण के निर्माण में संगोष्ठियों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। वरिष्ठ आचार्य प्रो. सुनील कुमार ने अंगवस्त्र प्रदान कर अतिथियों का अभिनन्दन किया। हिन्दी सहायक आचार्य डॉ. राकेश कुमार रंजन ने स्वागत-वक्तव्य के क्रम में सभी अतिथियों और श्रोताओं का स्वागत किया। मंच-संचालन डॉ. अनुज कुमार तरुण ने किया। शोधार्थी कुणाल किशोर ने आभार-ज्ञापन किया।

विशिष्ट अतिथि के रूप में आये मगध विवि. के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. भरत सिंह ने कहा कि सरहपा प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति थे और उन्हीं के सौजन्य से मागधी के माध्यम से हिन्दी का प्रसार हुआ। मागधी सम्राट अशोक के समय राजभाषा थी। भगवान महावीर के प्रवचन मागधी भाषा मे ही हैं। आजीवक दार्शनिक मक्खलि गोसाल का भी मागधी की वृद्धि में बड़ा योगदान है।
डॉ. भरत सिंह ने बताया कि चाँद और जगौनी से मगही का अध्यापन शुरू हुआ। नालन्दा विश्वविद्यालय से लेकर मगध विश्वविद्यालय में मगही के अध्ययन-अध्यापन की यात्रा का दिलचस्प ब्यौरा उन्होंने दिया। साथ ही संपत्ति आर्याणी, रामकृष्ण मिश्र, नलिन जी, घमंडी राम, डॉ. सत्येंद्र कुमार लक्ष्मण, डॉ. रामनंदन, डॉ. भरत, डॉ. रामप्रसाद, चतुर्भुज मिश्र, रवींद्र कुमार आदि कई मगही विद्वानों के योगदान को रेखांकित किया। मगही पत्रकारिता, सिनेमा आदि विभिन्न पक्षों पर उन्होंने विस्तार से अपनी बात रखी।

प्रो. सुनील कुमार ने बीज वक्तव्य के क्रम में मातृभाषा को संस्कृति का आधार बताया। शब्द और चित्र को साथ मे रखने की बात की। लुप्त हो रहे कई मगही शब्दों जैसे - मेहटा, छेकनी, चाभा, गरदमानी, बाड़ा आदि का वर्णन करते हुए मगही में मौलिक चिंतन की बात की। भाषा-विज्ञान और काव्यशास्त्र जैसे जटिल विषयों को मगही में प्रस्तुत करने की दिशा संकेतित की।
इस अवसर पर हिन्दी, मगही, इतिहास, शिक्षा आदि विभिन्न विभागों के स्नातकोत्तर और शोध कर रहे विद्यार्थीगण उपस्थित रहे। डॉ. अरविंद कुमार, डॉ. अम्बे कुमारी, डॉ. मिश्र आदि कई शिक्षकों की भी मौजूदगी रही। परवेज़, मुन्ना, इंद्रजीत, रोहित, धर्मेन्द्र, अजित आदि कर्मचारीगण भी मौजूद रहे।