बोधगया द्वारा मगध विश्वविद्यालय के राधाकृष्णन हॉल में "नये भारत का निर्माण: आपदा शमन की खोज" विषय पर एक दिवसीय विशेष व्याख्यान का आयोजन
रिपोर्टः डीकेपंडित
1 दिसंबर 2023 को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) के सहयोग से आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन सेल (आईक्यूएसी), मगध विश्वविद्यालय, बोधगया द्वारा मगध विश्वविद्यालय के राधाकृष्णन हॉल में "नये भारत का निर्माण: आपदा शमन की खोज" विषय पर एक दिवसीय विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। आईक्यूएसी समन्वयक प्रो. मुकेश कुमार ने अपने स्वागत संबोधन में सभी मुख्य अतिथियों एवं सभा में उपस्थित प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए, कार्यशाला के विषय वस्तु की संक्षिप्त जानकारी दी। प्रो. वीरेंद्र कुमार ने स्मृतिचिन्ह, पुष्पगुछ एवं अंगवस्त्र भेंट कर मुख्य वक्ता श्री के एम सिंह, सेवानिवृत भारतीय पुलिस अधिकारी को सम्मानित किया। कुलसचिव डॉ. समीर कुमार शर्मा ने स्मृतिचिन्ह, पुष्पगुछ एवं अंगवस्त्र भेंट कर श्री नरेंद्रनाथ टीकादार को सम्मानित किया।
कुलसचिव डॉ. समीर कुमार शर्मा ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि आपदा के बाद प्रलयकाल आता है। उन्होंने कहा कि बाहरी आपदा के साथ साथ आंतरिक आपदा का भी प्रबंधन जरूरी है। जैसे एक अभियंता आपदा प्रबंधन में सहायक साधनों को व्यवहार में लाता है, आंतरिक आपदा प्रबंधन के लिए हमें योग एवं प्राणायाम को व्यवहार में लाना चाहिए। मुख्य अतिथि प्रो. धनंजय सिंह, सदस्य सचिव, आईसीएसएसआर ने ऑनलाइन माध्यम से सभा को संबोधित करते हुए आपदा प्रबन्धन में भारत की क्षमता को दर्शाया। उन्होंने कहा कि हाल के कुछ वर्षों में हमें आपदाओं की लहर का सामना करना पड़ा है और देश के ज़िम्मेदार संस्थाओं एवं उनके वॉलंटियर्स ने सराहनीय योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि एक सफल आपदा प्रबंधन इस बात का सूचक है कि आपने खुद को कितना तैयार रखा है। उन्होंने मगध विश्वविद्यालय के इस कदम की सराहना करते हुए अपने वक्तव्य को विराम दिया। तत्पश्चात मुख्य वक्ता श्री के एम सिंह ने अपने बीज वक्तव्य की शुरुआत उत्तराखंड टनल में फंसे 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने वाले टीम की सराहना करते हुए की। उन्होंने आपदा प्रबंधन पर हुए संघाई समिट एवं प्रधान मंत्री के दस बिंदु एजेंडा की चर्चा करते हुए कहा कि भारत आपदा की भेद्यता में विश्व में तीसरे स्थान पर है। पिछले दो दशकों में भारत ने तीन ट्रिलियन डॉलर का नुकसान सह है। 2010 के भूकंप में हैती ने अपने 9.8 लाख की आबादी में लगभग ढाई लाख आबादी को दी, वहीं चीले में उससे अधिक रिक्टर स्केल की भूकंप से मात्र 500 मौतें हुई। उन्होंने जापान एवं बांग्लादेश का उदहारण देते हुए कहां कि इन देशों ने अपने आपदा प्रबंधन को ऐसे नियोजित किया कि बढ़ी हुई आबादी में भी न्यूनतम नुकसान सहा। उन्होंने भारत में आपदा प्रबंधन को तीन चरणों में बांटा - 2005 से पूर्व, 2005 से 2014, एवं 2014 पश्चात। उन्होंने ओरिसा के साइक्लोन, गुजरात के भूकंप, बंगाल की खाड़ी के सुनामी से संबंधित आपदा प्रबंधन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे सरकार के बदलते दृष्टिकोणों की वजह से आपदाओं में हुए हताहतों की संख्या में भारी कमी देखने को मिली है। 2014 के बाद आपदा प्रबंधन में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला। उन्होंने अर्ली वार्निंग सिस्टम (ईडबलूएस), प्रधान मंत्री के दस बिंदु एजेंडा 2016, राष्ट्रीय विद्यालय सुरक्षा प्रोग्राम, 2016, आपदा मित्र स्कीम , 2016, एवं कोलिशन फॉर डिजास्टर रेसिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर, 2019 को विस्तार में समझाया.
अध्यक्षीय भाषण के रूप में विज्ञानं संकाय के अध्यक्ष एवं भूगोल के विभागाध्यक्ष प्रो वीरेंद्र कुमार ने अपने निजी अनुभवों के उदाहरणों के माध्यम से स्थानीय आपदा प्रबंधन करने के प्रक्रियाओं पर बात की. उन्होंने ने तैयारी को आपदाओं से लड़ने में सर्वोच्च प्राथमिकता देने की बात कही। कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ अमित कुमार ने अंत में धन्यवाद ज्ञापन दिया. मंच संचालन राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक डॉ दिव्या मिश्रा ने किया। इसमें भूगोल विभाग एवं अन्य विभागों के के छात्र छात्राओं ने बढ़ चढ़ कर हिंसा लिया। इसमें विभिन्न विभागाध्यक्षों के आलावा डॉ शैलेन्द्र कुमार सिंह,डॉ गोपाल सिंह, डॉ धरेन पांडेय , राकेश कुमार,मौशमी,डॉ सुमित कुमार ,डॉ कुमार विशाल आदि शिक्षक एवं शिक्षिकाओं ने हिंसा लिया।