जब संत और भक्त पर बिपत्ति आती है तो भगवान जरूर आते हैं: साध्वी कृष्णा देवी

जब संत और भक्त पर बिपत्ति आती है तो भगवान जरूर आते हैं: साध्वी कृष्णा देवी 

खनियाधाना - चमरौआ ग्राम में बुधने नदी के तट पर  श्रीमदभागवतकथा सप्ताह ज्ञानयज्ञ के चौथे दिवस भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव सैकड़ों  श्रद्धालुओं से  भरे कथा पाण्डाल में बधाईयां के संगीत नाचते झूमते हुये हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कथायजमान और आयोजन मण्डल के सदस्यों की उपस्थिति में ब्यासपीठ से कथा व्यास साध्वी कृष्णा देवी जी मानस किंकरी ने बडे भाव के साथ भगवान की अमृतमयी कथा का श्रवण कराते हुये बताया कि जो बिवेक से बडा होता है वही वास्तविक रूप से बडा कहलाने लायक कहा जा सकता है। उन्होंने जीवनोपदेश दिया कि मनुष्य के जीवन में समय पल पल हमें मौत की ओर ले जा रहा है। लेकिन हम उस समय का सदुपयोग नहीं कर पा रहे हैं। यह मनुष्य जीवन हमें वास्तविकता में उस परमात्मा की भक्ति और सानिध्य के लिये प्राप्त हुआ है उन्होंने कहा कि जब जब भक्त ने भगवान को सच्चे भाव से पुकारा वो वहां पहुंचे हैं। उन्होंने द्रोपदी चीरहरण की कथा श्रवण कराते हुये कहा कि एक समय जब उंगली में कील चुभ जाने पर द्रोपदी ने अपनी साडी फाडकर भगवान की उंगली में बांधी थी तब का ऋण चुकाते हुये भगवान ने द्रोपदी का चीर बडाकर सहायता की। उन्होंने गोपियों का चीर चुराया और द्रोपदी का चीर बडाया। साध्वी कृष्णादेवी जी ने समुद्र मंथन क कथा श्रवण कराते हुये भगवान की लीलाओं का दृष्टांत सुनाया। उन्होंने विषधारण करने वाले कपूर वर्ण वाले भगवान का शरीर नीला पडने की कथा सुनाते हुये उनका नाम नीलकंठेश्वर महादेव पडने एवं भगवान के मोहनी रूप धारण करने की कथा श्रवण कराते हुये सुमधुर भजनों का संगीतमयी रसपान भी कराया। फिर कथा भगवान के जन्मोत्सव की ओर बडी और साध्वी कृष्णा देवी जी ने भगवान के जन्मोत्सव की कथा श्रवण कराते हुये भक्तों को आनंदित किया। उन्होंने कहा कि जो दूसरों के सुख का हरण करे वो कंश है। इसलिए हमें हमेशा सत्कर्म करते हुये दूसरों के सुख को छीनने का प्रयास नहीं करना चाहिये। उन्होंने मंत्र की महत्ता बताते हुये कहा कि जो मनन करने वाले का रक्षण करे वो मंत्र है। कथा के दौरान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाते हुये भगवान की बधाईयां सुमधुर भजनों के माध्यम से सम्पन्न हुईं जिन पर भक्तों ने आनंद लेते हुये जमकर नृत्य किया  नन्हें स्वरूप में कन्हैयाजी, नंदवावा व यशोदामैया के स्वरूपों के साथ नृत्य व बधाईयों के साथ उत्सव मनाया गया। और आनंद उत्सव मनाया। कथा के अंत में महाआरती, प्रसाद वितरण के साथ चौथे दिवस की कथा का समापन किया गया।