14 नवंबर को मनाई जाएगी नरक चतुर्दशी, जानिये पर्व स्‍नान और दीपदान का शुभ मुहूर्त

14 नवंबर को मनाई जाएगी नरक चतुर्दशी, जानिये पर्व स्‍नान और दीपदान का शुभ मुहूर्त
 


 नरक चतुर्दशी का त्योहार हर साल कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। चतुर्दशी तिथि को छोटी दीपावाली के नाम से भी जाना जाता है।

 नरक चतुर्दशी का पर्व धनतेरस और दिवाली के बीच आता है। नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली के नाम से जाना जाता है, को हर साल एक दिन पहले दीपावली के मुख्य त्‍योहार के रूप में मनाया जाता है। हालाँकि, इस वर्ष, नरक चतुर्दशी का पर्व दिवाली के दिन ही पड़ रहा है और 14 नवंबर, शनिवार को मनाया जाएगा। नरक चतुर्दशी पर, भक्त अभ्यंग स्नान करते हैं, जो इस त्योहार के मुख्य पहलुओं में से एक है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जो लोग नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान करते हैं, वे खुद को अधोलोक में जाने से रोक सकते हैं। यह एक ही दिन या कभी-कभी लक्ष्मी पूजा के एक दिन पहले किया जाता है। अभ्यंग स्नान एक समय में चंद्रोदय के समय किया गया था, लेकिन सूर्योदय से पहले पूरा किया जाना चाहिए, जबकि चतुर्दशी तिथि प्रचलित है। इस वर्ष 14 नवंबर 2020, शनिवार को चंद्रोदय व्यापिनी एवं पूर्व अरुणोदयाव्यापिणी चतुर्दशी होने के कारण इसी दिन नरक-चतुर्दशी मनाई जाएगी। इस दिन चतुर्दशी तिथि अपराह्न 2:18 बजे तक रहेगी तदोपरांत अमावस्या आरम्भ हो जाएगी। इस बार दीवाली के साथ 14 नवंबर को नरक चतुर्दशी भी मनाई जाएगी। नरक चतुर्दशी का त्योहार हर साल कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। चतुर्दशी तिथि को छोटी दीपावाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुबह स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा महत्व है। इस दिन स्नान का शुभ मुहूर्त 05 बजकर 00 मिनट से सुबह 06 बजकर 35 मिनट तक रहेगा

 

 

 

 


धनत्रयोदशी दीवाली का दूसरा दिन है। दीवाली समृद्धि का त्योहार है। धनत्र्योदशी पर धन, सोने, चांदी की पूजा करके आप और आपका परिवार आगे बढ़ते रहे। आज धनत्र्योदशी का आध्यात्मिक महत्व पता चल रहा है। अश्विन के महीने के 13 वें दिन धनतेरस या धनत्र्योदशी है। इसलिए अश्विन कृष्ण त्रयोदशी पर मनाया जाता है धनत्रयोदशी इस दिन को दिवाली पर्व का दूसरा दिन कहा जाता है। इस दिन से शुरू होती है दीवाली।


आज के दिन जरूर खरीदें एक थैली नमक, नहीं होगी धन धान्य की कमी

भाई दूज और शुभ मुहूर्त 2020

पांच दिनों तक चलने वाले महापर्व दीवाली के आखिरी दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। 16 नवंबर को भाई दूज का पर्व है। इसमें बहनें अपने भाई के माथे पर टीका लगाकर लंबी आयु का कामना करती हैं। भाईदूज का शुभ मुहूर्त 9 बजकर 26 मिनट से आरंभ होकर 10 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। इसके बाद चंचल में 13.34 से 14.57 तक। फिर लाभ व अमृत में 14.57 से 17.42 तक का समय शुभ रहेगा। शाम 17.42 से 19.20 तक रहेगा।

 धनतेरस पर आयुष्मान योग, इन चीजों की खरीदारी होगी शुभ

यह है धन त्रयोदशी की धार्मिक कहानी

कथित भविष्यवाणी के अनुसार हेमराज का पुत्र अपने सोलहवें वर्ष में मर जाएगा। राजा और रानी ने अपने बेटे से शादी की ताकि वह जीवन की हर खुशी का आनंद ले सके। शादी के बाद चौथा दिन मौत का दिन है। उसकी पत्नी उसे इस रात सोने नहीं देगी। सोने और चांदी के पम्प उसकी अनुपस्थिति में रखे जाते हैं। महल का प्रवेश द्वार सोने चांदी से भरा हुआ है। सभी महलों को बड़ी रोशनी से जलाया जाता है। पत्नी अलग अलग गाने और कहानियां सुनाकर जगाती है। जब यम एक सांप के रूप में राजकुमार के कमरे में प्रवेश करने की कोशिश करता है, तो उसकी आँखें सोने चांदी से चमक रही हैं। यही कारण है कि यम हमारे यमलोका में वापस आता है। ऐसे बचाई जाती है राजकुमार की जान। इसीलिए इस दिन को यमदीपदान भी कहा जाता है। आज शाम को वे घर के बाहर एक दीपक जलाते हैं और उसकी हवा का अंत दक्षिण की ओर कर देते हैं। उसके बाद दीपक को सलाम करते हैं। मुझे लगता है कि यह मौत से बच जाएगा।

 

ग्रहों का दुर्लभ संयोग, 5 नहीं 4 दिन का होगा दीपोत्सव

धनत्र्योदशी के बारे में एक और कथा है। वह एक 'समुद्र मंथन' है। जब इंद्रदेव ने महर्षि दुर्वास के श्राप में समुद्र को असुर के साथ घुमाया तो उसमे से लक्ष्मी प्रकट हुई। इसी तरह धनवंतारी ने अमृतकुम्भ को समुद्र के मंथन से निकाला। इसलिए आज के दिन धनवंतरी की भी पूजा होती है। इस दिन को धनवंतरी जयंती के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद के मद्देनजर आज का दिन धनवंतरी जयंती का है। डॉक्टर आज के दिन धनवंतरी की पूजा करते हैं । प्रसाद ऐसे लोगों को पतले टुकड़े और कदूनिम्बा की चीनी देते हैं। इसका एक बड़ा अर्थ है। कदुनिम्बा का जन्म अमृता से होता है।

 लक्ष्मी पूजन से सालभर सौभाग्य की प्राप्ति, जानिए क्यों चढ़ाई जाती है कौड़ी
यह भी पढ़ें

जानिये नरक चतुर्दशी की कथा, मान्‍यता

हमारी सनातन संस्कृति में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पांच पर्वों का जो विराट महोत्सव मनाया जाता है, महापर्व की उस श्रृंखला में सबसे पहले पर्व 'धन त्रयोदशी' के बाद दूसरा पर्व आता है 'नरक चतुर्दशी'। इसके नाम में 'नरक' शब्द से ही आभास होता है कि इस पर्व का संबंध भी किसी न किसी रूप में मृत्यु अथवा यमराज से है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन यमराज का पूजन करने तथा व्रत रखने से नरक की प्राप्ति नहीं होती। इस पर्व को 'रूप चतुर्दशी', 'काल चतुर्दशी' तथा 'छोटी दीपावली' आदि नामों से भी जाना जाता है। स्वतंत्र टिप्पणीकार योगेश कुमार गोयल लिखते हैं कि इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और धर्मराज चित्रगुप्त का पूजन किया जाता है और यमराज से प्रार्थना की जाती है कि उनकी कृपा से हमें नरक के भय से मुक्ति मिले। इसी दिन वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगते हुए तीनों लोकों सहित बलि के शरीर को भी अपने तीन पगों में नाप लिया था। यम को मृत्यु का देवता और संयम के अधिष्ठाता देव माना गया है।

नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना शुभ माना गया है और सायंकाल के समय यम के लिए दीपदान किया जाता है। आशय यही है कि संयम-नियम से रहने वालों को मृत्यु से जरा भी भयभीत नहीं होना चाहिए। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने का आशय ही आलस्य का त्याग करने से है और इसका सीधा संदेश यही है कि संयम और नियम से रहने से आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा और आपकी अपनी साधना ही आपकी रक्षा करेगी। नरक चतुर्दशी मनाए जाने के संबंध में एक मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने प्रागज्योतिषपुर के अधर्मी राजा 'नरकासुर' का वध किया था और ऐसा करके उन्होंने न केवल पृथ्वीवासियों को बल्कि देवताओं को भी नरकासुर राक्षस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। उसके आतंक से पृथ्वी के समस्त शूरवीर और सम्राट भी थर-थर कांपते थे। अपनी शक्ति के घमंड में चूर नरकासुर शक्ति का दुरुपयोग करते हुए स्त्रियों पर भी अत्याचार करता था। उसने 16000 मानव, देव एवं गंधर्व कन्याओं को बंदी बना रखा था।

देवों और ऋषि-मुनियों के अनुरोध पर भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा के सहयोग से नरकासुर का संहार किया था और उसके बंदीगृह से 16000 कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। नरकासुर से मुक्ति पाने की खुशी में देवगण व पृथ्वीवासी बहुत आनंदित हुए। माना जाता है कि तभी से इस पर्व को मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई। धनतेरस, नरक चतुर्दशी तथा दीवाली के दिन दीपक जलाए जाने के संबंध में एक मान्यता यह भी है कि इन दिनों में वामन भगवान ने अपने तीन पगों में संपूर्ण पृथ्वी, पाताल लोक, ब्रह्माण्ड व दैत्यराज बलि के शरीर को नाप लिया था और इन तीन पगों की महत्ता के कारण ही लोग यम यातना से मुक्ति पाने के उद्देश्य से तीन दिनों तक दीपक जलाते हैं तथा सुख, समृद्धि एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु मां लक्ष्मी का पूजन करते हैं।

यह भी कहा जाता है कि राजा बलि की दानवीरता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने बाद में पाताल लोक का शासन बलि को ही सौंपते हुए उसे आशीर्वाद दिया था कि उसकी याद में पृथ्वीवासी लगातार तीन दिन तक हर वर्ष उनके लिए दीपदान करेंगे। नरक चतुर्दशी का संबंध स्वच्छता से भी है। इस दिन लोग अपने घरों का कूड़ा-कचरा बाहर निकालते हैं। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व तेल एवं उबटन लगाकर स्नान करने से पुण्य मिलता है।

 


विनोद कुमार प्रजापति